गुरुवार की रात पाकिस्तान के अरशद नदीम(Arshad Nadeem) ने ओलंपिक में जेवालिन थ्रो में 92.97 मीटर दूर भाला फेंककर इतिहास रच दिया और गोल्ड मेडल अपने नाम किया। यह न केवल उनका सर्वश्रेष्ठ थ्रो था बल्कि ओलंपिक के इतिहास का भी (पिछला नॉर्ने के एथलीट थोरकिल्डसेन एंड्रियास ने साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक में 90.57 मीटर) है। उन्होंने इस Olympic में पाकिस्तान के पहला मेडल जीता। Olympic में 1992 से चल रहे पदक के सूखे को भी 32 साल बाद खत्म कर दिया। लेकिन अरशद नदीम(Arshad Nadeem) के लिए यह राह आसान नहीं रही। एक समय उनके पास भाला खरीदने तक के नहीं थे। उन्होंने पेरिस ओलंपिक (Paris Olympic) की ट्रेनिंग के लिए चंदा इकट्ठा करते थे। काफी संघर्ष के बाद उन्होंने अब ये मुकाम हासिल किए। पढ़िए अरशद नदीम(Arshad Nadeem) की यह संघर्ष भरी दास्तां
बचपन और पारिवारिक संघर्ष
अरशद नदीम का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, जहाँ उनके पिता एक मजदूर के रूप में काम करते थे। घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उनके पिता के लिए घर के खर्चों के अलावा अरशद की ट्रेनिंग के खर्चे उठाना असंभव था। इसके बावजूद, अरशद के पिता ने अपने बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया।
नेजाबाजी से जैवलिन थ्रो तक का सफर
जब अरशद छोटे थे, तो वे अपने पिता के साथ पाकिस्तान के मशहूर खेल नेजाबाजी (इसे भारत में घुड़सवारी कहा जाता है) देखने जाते थे। इस खेल ने उन्हें बहुत प्रभावित किया, और उन्होंने इसकी ट्रेनिंग शुरू कर दी। लेकिन बाद में उनकी दिलचस्पी जैवलिन थ्रो में हो गई और उन्होंने इसकी प्रैक्टिस शुरू कर दी। स्कूल के एथलेटिक्स इवेंट के दौरान उनकी प्रतिभा को देखकर सभी हैरान रह गए। स्कूल के कोच रशीद अहमद सकी ने अरशद की इस प्रतिभा को पहचाना और उनकी जैवलिन थ्रो की ट्रेनिंग शुरू की।
सरकारी नौकरी के लिए संघर्ष
अरशद नदीम आठ भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थे। उनके घर की हालत ठीक नहीं थी, और उनके पिता केवल 400-500 रुपये की मजदूरी करते थे। इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उनके पिता ने अरशद की प्रैक्टिस में कोई कमी नहीं आने दी और उन्हें दूध-घी की व्यवस्था भी उपलब्ध कराई। घर की आर्थिक स्थिति के कारण, अरशद का सपना था कि वह एक सरकारी नौकरी हासिल करें। उन्होंने स्पोर्ट्स कोटा के तहत पाकिस्तान वॉटर एंड पावर डेवलपमेंट अथॉरिटी के लिए ट्रायल्स दिए थे, जहाँ उनकी मुलाकात सैय्यद हुसैन बुखारी से हुई। बुखारी ने न केवल अरशद को सरकारी नौकरी दिलाई, बल्कि उनके करियर को भी एक नई दिशा दी।
पाकिस्तान उपलब्ध नहीं करा पाया था भाला
अरशद को पेरिस ओलंपिक के लिए जैवलिन थ्रो की ट्रेनिंग करनी थी, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते उन्हें चंदा इकट्ठा करना पड़ा। इस मुश्किल समय में, उन्हें एक पुराने और खराब हो चुके भाले से ही अभ्यास करना पड़ा क्योंकि उनके पास नया भाला खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने कई बार पाकिस्तानी खेल प्रशासन से नया भाला उपलब्ध कराने की अपील भी की थी, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
चंदे के पैसे से की ओलंपिक की तैयारी
अरशद के पिता ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके बेटे की ट्रेनिंग के लिए दोस्त, गाँव के लोग और रिश्तेदारों ने मिलकर पैसे इकट्ठे किए। अरशद की सफलता को लेकर उनके पिता ने कहा कि लोग नहीं जानते कि वह इस मुकाम पर कैसे पहुंचे हैं। यह उनकी मेहनत और तमाम लोगों की दुआओं का नतीजा है। जब अरशद ने ओलंपिक के फाइनल में जगह बनाई, तो उनके गाँव में जश्न का माहौल था।
Arshad Nadeem की उपलब्धियां
अरशद नदीम ने साल 2011 में एथलेटिक्स में कदम रखा और साल 2015 में पाकिस्तान के नेशनल चैंपियन बने। वह पाकिस्तान की तरफ से टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले पहले ट्रैक एंड फील्ड एथलीट बने। इसके अलावा, उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में गोल्ड मेडल भी जीता।