रमज़ान का यह महीना बरकतों व इबादतों का है, इस महीने में होते है 3 अशरे
यह महिना मुसलमानो के लिए बहुत खास होता है, यह मान्यता है कि रमजान–उल–मुबारिक मुस्लिम धर्मानुलंबियों के लिए अल्लाह की तरफ से एक इनाम व इकराम है जिसने इसे पा लिया उसे मिल गया और जिसने ना पाया वह रह गया। इस माह के चांद दिखने के बाद से हि इबादतों, नमाजों, तरावीह व तस्बियों का दौर लगातार सभी मस्जिदों में जारी है, तो वहीं हर मुसलमान समाज के बच्चे व बड़े मस्तुराते मशक्कत के साथ रोजे रख रहे हैं। जिसमें सहरी व इफ्तार की दावते भी जगह-जगह देखने को मिल रही हैं। रमज़ान महीना 3 अशरो में विभाजित होता है, जिनकी मान्यता कुछ इस प्रकार से है –
- पहला अशरा – रहमत का (उस रब की बारगाह–ए–करीमी में आंसुओं के चिरागों से उजाला और उसकी रहमत पुकारने के लिए)
- दूसरा अशरा – मगफिरत का (मगफिरत की जुस्तजू में और तलब में मसरूफ होने के लिए)
- तीसरा अशरा – जहन्नम से आज़ादी के लिए (जहन्नम से आजादी का परवाना लेने के लिए बिन पानी मछली की तरह तड़पने के लिए)
याद रहे की एक अशरा 10 रोज़ों का होता है, ऐसे 3 अशरे 30 दिनों के होते हैं। इन दिनों में सभी मुसलमान पांचों वक्त की नमाज़ पाबंदी के साथ पढ़ते है, वहीं पूरे दिन का रोज़ा भी रखते है, रमजान महीने के आखरी अशरे में 5 रातें जागी जाति है जिनमे पूरी रात ईश्वर की इबादत व रियाज़त की जाती है। इस माह की यह मान्यता भी है की इसमें एक नेकी करने पर 70 नेकियों के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होता है।