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भारत में हिदूओं की तुलना में तेजी से बढ़ रहे मुस्लिम, पिछले 65 साल में भारत में 43.15 फीसदी मुस्लिम आबादी बढीं

पिछले कुछ समय में भारत में तेजी से हिंदूओं की संख्या में गिरावट देखने को मिल रही है। हाल ही में आयी प्रधानमंत्री की अर्थिक सलाहकार रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसद घट गई। वहीं इसी बीच मुसलमानों की आबादी में 43.15 फीसद बढ़ोतरी दर्ज की गई। हिंदुओं की आबादी घटने का सिलसिला पड़ोसी हिंदू बहुल नेपाल में देखने को मिला है। साथ ही म्यांमार में भी बहुसंख्यक बौद्धों की आबादी में गिरावट आई है।

दुनियाभर में बढ़ रहे मुस्लिम

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देशों में 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव का अध्ययन किया है। परिषद ने इसी महीने यह रिपोर्ट जारी की है। इन देशों में बहुसंख्यक उन्हें माना गया है, जिनकी आबादी 75 फीसद से अधिक है।

रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में 65 सालों में बहुसंख्यकों की आबादी में 22 फीसद की कमी आई है। लेकिन यह सिलसिला मुस्लिम बहुसंख्यक देशों पर लागू नहीं होता है। मुस्लिम बहुल 38 देशों में मुस्लिम आबादी बढ़ी है। रिपोर्ट का उद्देश्य किसी देश की जनसांख्यिकी परिवर्तन का वहां की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और शासन प्रणाली पर पड़ने वाले असर का आकलन है।

हिदूओं की आबादी में हो रही गिरावट

दक्षिण एशियाई देशों में 65 साल में आए जनसांख्यिकी परिवर्तन की तस्वीर पेश करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध आबादी 78.53 फीसद से घटकर 70.80 फीसद रह गई है। जबकि श्रीलंका में बहुसंख्यक बौद्धों की आबादी में 64.28 से बढ़कर 67.65 फीसद हो गई है। श्रीलंका की तरह ही भूटान में भी बौद्धों की आबादी में जबरदस्त इजाफा हुआ है और यह 71.44 फीसद से बढ़कर 84.07 फीसद पहुंच गई।जबकि भारत में हिंदू आबादी में कमी का सिलसिला नेपाल में भी देखा गया और वहां हिंदुओं की संख्या 84.30 फीसद से घटकर 81.26 फीसद तक पहुंच गई। भारत में मुसलमानों के साथ ही ईसाई और सिख अल्पसंख्यक की आबादी में क्रमश: 5.38 फीसद और 6.58 फीसद की बढ़ोतरी हुई है।

दक्षिण एशियाई देशों में 65 साल में आए जनसांख्यिकी परिवर्तन की तस्वीर पेश करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध आबादी 78.53 फीसद से घटकर 70.80 फीसद रह गई है। जबकि श्रीलंका में बहुसंख्यक बौद्धों की आबादी में 64.28 से बढ़कर 67.65 फीसद हो गई है। श्रीलंका की तरह ही भूटान में भी बौद्धों की आबादी में जबरदस्त इजाफा हुआ है और यह 71.44 फीसद से बढ़कर 84.07 फीसद पहुंच गई।

जानिए क्या है धार की भोजशाला का विवाद, जिस पर एक बार फिर आमने-सामने हो गए हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग

अयोध्या, मथुरा काशी के बाद धार की भोजशाला (Bhojshala) के सर्वेक्षण को लेकर विवाद थम नहीं रहा है। हाल में इंदौर उच्च न्यायालय ने एएसआई को आदेश दिया कि दोनों पक्षों के सामने ही पूरा किया जाए सर्वेक्षण। इसको हिन्दू पक्ष ने आदेश को दशकों पुरानी जीत बताया है।

सर्वेक्षण के निर्णय से हुई हलचल

मध्यप्रदेश में चुनाव के वक्त कोर्ट का धार स्थित भोजशाला या कमाल मौला मस्जिद के सर्वेक्षण को लेकर निर्णय देने से प्रेदेश में हलचल शुरू हो गई है। हिन्दू फ़ॉर जस्टिस के द्वारा लगाई याचिका पर इंदौर हाई कोर्ट पीठ के जस्टिस एस. ए. धर्माधिकारी और जस्टिस देवनारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा, “भोजशाला मंदिर सह-कमाल मौला मस्जिद परिसर का जल्द से जल्द वैज्ञानिक सर्वेक्षण और अध्ययन कराना एएसआई (ASI) का संवैधानिक और क़ानूनी दायित्व है।”

पीठ ने यह निर्देश दिए हैं

अदालत ने कहा कि एक्सपर्ट कमिटी में दोनों ही समुदाय के अधिकारी हों। दोनों पक्षों के नामित प्रतिनिधियों की मौजूदगी में फ़ोटोग्राफ़ी, वीडियोग्राफ़ी होएएसआई ने बंद पड़े कमरों, पूरे परिसर के हॉल और सभी कलाकृति, प्रतिमा, ढांचे की सूची बनाने और उसकी वैज्ञानिक जांच करने को कहा है। कार्बन डेटिंग समेत आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल कर विभिन्न ढांचों की उम्र का अंदाजा लगाया जाए।

हिन्दू पक्ष ने कहा कि वर्षों से कर रहे संघर्ष अब पूर्ण हुआ

हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने फैसला का स्वागत किया और जानकारी साझा कि हमने 2003 के एएसआई के फैसले को कोर्ट में चनौती दी थी, जिसे माननीय न्यायालय ने स्वीकार कर 11 मार्च को एएसआई को आदेश दिए हैं कि भोजशाला का दोनों पक्षों की मौजूदगी में सर्वे हो, कोर्ट ने 29 अप्रैल को फिर से सुनवाई की डेट दी है।

वहीं जस्टिस फ़ॉर हिन्दू से जुड़े आशीष गोयल ने कहा, “ये हिंदू समाज की बड़ी जीत है, मां सरस्वती मंदिर भोजशाला में पूजा का अधिकार बिना किसी शर्त के मिले, इसके लिए हिंदू समाज वर्षों से प्रयासरत है। अदालत ने सर्वे के आदेश दे दिए हैं। इससे सच सामने आएगा और प्रमाणिकता के साथ मां सरस्वती मंदिर भोजशाला में पुन: मां वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित होगी।”

कुछ लोग इतिहास बदलने की कोशिश कर रहे हैं

मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले से इतर अपना अलग रुख अपनाया है शहर काजी ने कहा कि यहां मुसलमान 800 से ज्यादा समय से नमाज अदा कर रहा है, कुछ लोगों के हाथ मे ताकत है तो वो मस्जिद का इतिहास बदलने की कोशिश कर रहे हैं। हमे कोर्ट के फैसले पर एतराज है और मुस्लिम समुदाय ऐसा होने नहीं देगा यह हमारी धरोहर है।

एएसआई ने 1902-03 की रिपोर्ट का हवाला दिया

एएसआई ने अपने 2003 के फैसले को जिसमें हिन्दू पक्ष को मंगलवार और मुस्लिम को शुक्रवार को नमाज अदा करने की इजाजत दी थी। अब एएसआई ने कहा कि 2003 में 1902-03 की रिपोर्ट को नजरअंदाज किया गया था जिसमें लिखा है कि यहां वाग्देवी की मूर्ति और विद्यालय था जिसे क़ुतुबुद्दीन के शासन में तोड़ा दिया गया था।

मुस्लिम पक्ष के वकील अजय बागड़िया ने कहा की सरकार और एएसआई एक खास तरह का पक्ष ले रही है। न्यायालय ने अगली सुनवाई 29 अप्रैल को रखी है।क्या इतिहास है। भोजशाला सह कमाल मौला मस्जिद काधार ज़िले की वेबसाइट के अनुसार, राजा भोज ने धार में एक कॉलेज की स्थापना की थी जिसे बाद में भोजशाला कहा गया।

वहीं एक रिसर्चर विलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “20वीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों से कमालुद्दीन चिश्ती की मज़ार के पास स्थित मस्जिद की पहचान भोजशाला के रूप में की गई जिसके बाद से ‘ये इमारत धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तनाव के केंद्र में बदल गया।”