कांग्रेस ने अपने ही गढ़ में ऐसी मात खाई की 35 साल से अब तक चुनाव जीतने में विफल आजादी से ही कांग्रेस का गढ़ रहा
इंदौर लोकसभा क्षेत्र अब पूरी तरह से भाजपामय हो गया है, 1989 में पहली बार जीती सुमित्रा महाजन ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी को कड़ी शिकस्त दी थी, जिसके बाद ताई के नाम से मशहूर सुमित्रा महाजन 8 बार सांसद रही। वर्तमान में इंदौर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली 9 विधानसभा भी भाजपा के कब्जे में है और 1983 में पहली बार इंदौर निगम जीतकर कांग्रेस का सफाया कर दिया।
देश एक मात्र शहर है इंदौर
मप्र के आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर शहर पूरे देश मे एक मात्र शहर ऐसा है जहाँ आईआईएम और आईआईटी दोनों ही मौजूद हैं। विश्वप्रसिद्ध दोनों संस्थानों की स्थापना कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही गई। बीआरटीएस का प्रोजेक्ट भी यूपीए सरकार के समय शहर को मिला था, पर स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने मुद्दा ना भुना पाने से नगर निगम तक हाथ से निकल गया।
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भी हार गए चुनाव
2023 विधानसभा चुनावों में जहाँ कांग्रेस दम लगा रही थी कि 18 साल की एन्टी इनकम्बेंसी है पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के द्वारा शुरू की गई योजना की लहर में लगातार अच्छे बहुमत से जीत रहे जीतू पटवारी को भी हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद कांग्रेस इंदौर की सभी विधानसभा से वर्चस्व खत्म हो गया।विजयवर्गीय जहाँ गए वहाँ जीते इंदौर के कद्दावर नेता और वर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के लिए ऐसा कहा जाता है कि वे जिस विधानसभा से चुनाव लड़ ले उसके बाद वहां कांग्रेस चुनाव नहीं जीत पाती है, उन्होंने तीन नम्बर हो महू और इस विधानसभा क्रमांक 1 में लगातार कांग्रेस को प्रचंड बहुमत से हराया है।
अपने नेताओं की सुस्ती और कामों को जनता तक ना पहुचना पड़ा भारी
इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ता शिवाजी मोहिते का कहना है कि इंदौर में कांग्रेस एक समय काफी मजबूत थी, लेकिन 1989 के बाद संगठन पर बड़े नेतागणों ने ध्यान नहीं दिया। कई सालों तक कार्यकारिणी घोषित नहीं होती थी, जबकि भाजपा ने वार्ड और बूथ स्तर पर संगठन खड़ा करने में मेहनत की। इंदौर में कई बड़े काम कांग्रेस सरकार की देन हैं, लेकिन चुनाव के समय कांग्रेस उम्मीदवार उसे भुना नहीं पाए।