मंगलवार को उप्र के हाथरस के फुलरई गांव में भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ मच गई। इस भगदड में 8 बजे तक रिपोर्ट के अनुसार 122 लोगों की जान चली गई। इस सत्संग में 5 हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे। हादसा इतना भयावह था कि पास की शासकीय अस्पताल के पास शवों को रखने के लिए जगह तक नहीं थी। जिसके कारण शव सड़क पर पड़े थे। जिन्हें देखकर एक पुलिसकर्मी की भी मौत हो गई। इन सबके बीच सबके मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर कौन है भोले बाबा जिन्हें सुनने इतनी संख्या में श्रध्दालु पहुंचे और वें इतने बड़े हादसे का शिकार बने। आईये जानते है भोले बाबा के बारे में।
खुद को आईबी का पूर्व कर्मचारी बताते हैं
साकार हरि बाबा उर्फ भोले बाबा का असली नाम सूरज पाल सिंह है। वे उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बहादुर नगरी गांव के निवासी हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं हुई। भोले बाबा खुद को इंटेलिजेंस ब्यूरो का पूर्व कर्मचारी बताते हैं। उन्होंने 26 साल पहले सरकारी नौकरी छोड़ धार्मिक प्रवचन देना शुरू किया और अपना नाम बदलकर नारायण साकार हरि रख लिया।
सफेद सूट और टाई लगाते हैं भोले बाबा
अन्य साधु-संतों के विपरीत, नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा गेरुआ वस्त्र नहीं धारण करते। वे अक्सर सफेद सूट, टाई और जूते में नजर आते हैं और कभी-कभी कुर्ता-पायजामा पहनते हैं। वर्तमान युग में जहां अधिकांश साधु-संत सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, वहीं भोले बाबा इससे दूर रहते हैं।
लाखों अनुयायी है बाबा के
भोले बाबा के लाखों अनुयायी हैं जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली सहित पूरे देश में फैले हैं। अपने समागम में बाबा बताते हैं कि सरकारी नौकरी के दौरान उनका मन बार-बार आध्यात्म की ओर भागता था और उन्होंने निस्वार्थ भाव से भक्तों की सेवा करना शुरू कर दिया। उनके समागम को ‘मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम’ कहा जाता है। वे बताते हैं कि समागम में जो भी दान, दक्षिणा या चढ़ावा आता है, उसे वे अपने पास नहीं रखते बल्कि भक्तों में खर्च कर देते हैं।
नारायण साकार हरि खुद को हरि का शिष्य बताते हैं और कहते हैं कि साकार हरि पूरे ब्रह्मांड के मालिक हैं। उनके अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और शंकर ने भी साकार हरि को ही गुरु माना है। स्थानीय लोग बताते हैं कि हाथरस और आसपास के इलाकों में भोले बाबा पिछले 10 वर्षों से सत्संग कर रहे हैं।
इस घटना ने एक बार फिर विवादों को जन्म दिया है। दो साल पहले, मई 2022 में जब देश में कोरोना महामारी की लहर चल रही थी, तब भी फर्रुखाबाद में भोले बाबा के सत्संग का आयोजन किया गया था। उस समय भी हजारों लोग इकट्ठे हुए थे, जिससे महामारी के फैलने का खतरा बढ़ गया था।इस घटना ने न केवल प्रशासन बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया है। भगदड़ में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों के लिए यह एक बड़ी त्रासदी है। प्रशासन को ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सत्संग और अन्य धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा इंतजामों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।