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बुंदेलखंड के इस गांव में राजपूतों के कुंए से पानी नहीं भर सकते हैं दलित और हरिजन, केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री भी खत्म नहीं कर पाए यह पंरपरा

भारत में भेदभाव और जातिगत के मामले कई सामने आते हैं। लेकिन भारत के संविधान में इसकी जगह नहीं है। फिर भी मप्र के टीकमगढ़ जिले के एक गांव में आज भी जातिगत और भेदभाव देखने को मिलता है। जहां जिस कुंए से सवर्ण यानि राजपूत ब्राह्मण पानी भरते हैं उस कुंए से हरिजन और दलित पानी नहीं भर पाते हैं। हैरानी कि बात ये है कि ये गांव के सासंद देश के केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री वीरेन्द्र खटीक है। लेकिन फिर भी ऐसा कई सालों से चल रहा है।

75 साल पहले से चल रही पंरपरा

दरअसल हम जिस गांव की बात कर रहे हैं। वह टीकमगढ़ जिले की ग्राम पंचायत सुजानपुरा है। जहां सामाजिक वर्ण व्यवस्था को बीते कई साल गुजर गए और आजादी मिले 75 साल, लेकिन इस ग्राम पंचायत में पानी के लिए जो कुआं बनाए गए हैं, वह वर्ण व्यवस्था पर आज भी आधारित है।

एक लाइन में तीन कुआं, जिसमें सामान्य, पिछड़ा वर्ग का एक कुआं और हरिजन के लिए अलग-अलग 2 कुएं हैं। भले ही यहां का तापमान 46 डिग्री हो और तीनों कुओं पर सुबह से पानी के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन दोपहर होते-होते इन कुओं पर पानी लेने वालों की संख्या कम हो जाती है। अगर हरिजन के कुएं पर भीड़ है और सामान्य पिछड़ा का कुआं खाली पड़ा है तो कुएं से पानी नहीं भर सकता है।

दो अलग-अलग कुंए

गांव के रहने वाले राजेश वंशकार कहते हैं कि हरिजनों के लिए 2 कुआं खोदा गया था। वह खंडहर हो चुका है, ऐसे में वह लोग अन्य कुएं से पानी नहीं भर सकते हैं। यहां तक कि वंशकार समाज के लोग अहिरवार समाज के कुएं से पानी नहीं भर सकते, इसके लिए उन्हें गांव से 2 किलोमीटर दूर पानी लाना पड़ता है।

गांव के ही रहने वाले राजकिशोर कहते हैं कि यह व्यवस्था आज से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है। इसको लेकर ना तो किसी समाज या जाति में गिलानी है ना ही कभी भेदभाव होता है। यह व्यवस्था तो हजारों साल पुरानी है।ग्राम पंचायत में सभी समाज जाति के लोग सौहार्द पूर्वक निवास करते हैं।

सरपंच प्रतिनिधि रामसेवक यादव कहते हैं कि ग्राम पंचायत में अलग-अलग जातिगत मोहल्लों ने कुआं की व्यवस्था बना ली थी जो आज से नहीं सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। आज तक ना तो पंचायत में कोई विवाद हुआ है और ना ही इस तरह की समस्या कभी सामने आई है। जिस कारण से प्रशासन ने भी कोई पहल नहीं की है।

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