आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी खतरनाक टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। इसी से जुड़ी नई तकनीक डीपफेक दुनिया भर में काफी तेजी से फैल रहा है। ओबामा से लेकर पुतिन और मनोज से लेकर रश्मिका तक, आज हम जो देख रहे हैं वह उस नुकसान की एक झलक मात्र है, जो एक अनियंत्रित टेक्नोलॉजी हम पर ला सकती है। इसको लेकर हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चिंता व्यक्त की थी और उन्होंने इसको चिंता जाहिर की थी। आईये जानते है इसके बारे में विस्तार से।
जानिए क्या होता है डीपफेक
यह एक तरह फेक वीडियो और ऑडियो है जिस से समाज मे भृमित जानकारी फैलाई जाती है, जिसका शिकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, सचिन तेंदुलकर से लेकर मॉडल रश्मिका भी हई हैं। हाल में ही एक वीडियो जमकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था जिसमें सचिन एक गेमिंग एप्पलीकेशन का प्रचार करते हुए दिख रहे थे, “डीपफेक” में चेहरे, आवाज, हाव-भाव का बेहतरीन तरीके से एडिट किया जाता है कि सच क्या है? पता लगा पाना बेहद ही मुश्किल हो जाता है।
बाद में उन्होंने में एक्स प्लेटफार्म से इस वीडियो को फेक बताया। ऐसा ही वीडियो प्रधानमंत्री का भी वायरल हुआ था जिसमें वो एक गरबा महोत्सव में गाना गाते हुए हैं दिख रहे थे, जिसके बाद इसके बढ़ते नकारात्मक प्रभाव को लेकर प्रधानमंत्री ने चिंता भी जाहिर की थी।
“डीपफेक” कैसे बनाते हैं?
डीपफेक को गहन शिक्षण और जनरेटिव एडवर्सिरियाल नेटवर्क जैसे सॉफिस्टिकेटेड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकों का उपयोग करके बनाया जाता है। इसे 2017 में अमेरिका में पहली बार इस शब्द का प्रयोग किया गया था और तब से ही इसके बढ़ते दुष्प्रभाव पर शोध जारी है। यह बाकि एडिटिंग एप्लीकेशन जैसे फोटोशॉप , पिक्स आर्ट आदि से बेहद ही अलग है क्योंकि डिपफेक में पूर्ण से डीप न्यूरल नेटवर्क का उपयोग कर नया कॉन्टेंट क्रिएट कर सकते हैं, जिससे उसकी प्रमाणिकता का पता करना मुश्किल हो जता है।
डीपफेक का बढ़ता दुरुपयोग
ऑनलाइन डीपफेक कॉन्टेंट की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। स्टार्टअप डीपट्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के शुरुआत में 7964 डिपफेक वीडियो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर थे, केवल 9 महीने बाद ही इनकी संख्या बढ़कर 14,678 हो गई थी, और इसने कोई संदेह नहीं है कि ये अकड़ा 2024 में 10 गुना बढ़ गया होगा परन्तु इसका इस तरह से ऑनलाइन माध्यमों पर मिलना चिंताजनक है। मान लीजिए अगर किसी चुनाव में अगर प्रत्यशी का डिपफेक वायरल कर दिया जाता है तो वहाँ अरकजता का माहौल हो जाएगा जो एक सभ्य समाज के लिए उचित नहीं है।
इसके दुष्प्रभाव को देखते हुए भारत सरकार के आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बताया है कि सरकार 7- 8 दिनों में ही नए कठोर आईटी के नियम बना रही है जिससे आपत्तिजनक डीपफेक को प्रतिबंधित किया जा सके और और आईटी नियम का उल्लंघन करने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
पहचान कैसे करें?
आमतौर पर इस समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है पर, आप उस व्यक्ति की त्वचा, बाल, चेहरे पर गौर करें और गले पर धुंधलापन है या परछाई ज्यादा है जो डिपफेक वीडियो में दिखाया गया है तो वह फेक है। डीपफेक अल्गोरिथम हमेशा ही इस्तेमाल किया क्लिप की लाइटिंग को ही लेता है, लेकिन टारगेट वीडियो की लाइटिंग से मिलाने पर फर्क दिखता है।
डीपफेक बड़ा खतरा बन सकता है
सोर्स कितना भरोसेमंद है, जिस माध्यम से अपलोड हुआ है वहाँ प्रासंगिक है या नहीं इसे देखने से भी की पहचान की जा सकती है। परन्तु भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की बात करें तो यहां इसे वायरल करना बेहद ही आसान है क्योंकि भारत में स्मार्ट फ़ोन यूजर लगभग 90 करोड़ है और अगर हम डिजिटल लिटरेसी की बात करें शहरी इलाकों में 61% और ग्रामीण क्षेत्रों में 25% जो कि भारत की आबादी का दशवा हिस्सा भी नहीं है। ऐसे में भारत में डिपफेक से ओर भी खतरा बढ़ जाता है।